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Friday, September 25, 2015

अल्लाह की रहमत।

अल्लाह की रहमत। 
Image result for eid ki qurbaniबकरीद पर हर मुस्लमान (मूसल है इमां तो) इस पर सोचे।पशु मात्र पशु नहीं रहता, जब वह बच्चों के साथ पलता बढ़ता है।  मक़सूद मासूम सा आठ वर्ष का बच्चा था, उसे पशु  और मानव में अभी मानव  द्वारा पैदा किये भेद का इल्म नहीं था। माँ रुबीना ने उसे बहुत सी कहानियाँ सुनाई थी, अल्लाह और रसूल के बारे में। माँ के प्यार और ज्ञान ने उसके नन्हे मन पर उन बातों को पत्थर पर लकीर सा उकेर दिया था। 
कोई भी गलत बात उसे लगती, तो माँ से अवश्य कहता कि अम्मी ये बात ठीक नहीं है, हमारे रसूल ने ऐसा तो नहीं कहा है। माँ बेटे की समझ और सोच पर मन ही मन खुदा को शुक्रिया कहती और हर नमाज में अपने बेटे के लिए दुआयें मांगती। 
घर का और आसपास का माहौल बहुत ही सुखद था, कल बकरीद थी। मक़सूद अपने बकरे चाँद को रोज दाना और पीपल के पट्टे खिलाता था। घर में इकलौता बेटा था। सब बहुत प्यार करते थे उसे और चाँद उसका सबसे अच्छा मित्र। ईद के रोज चाँद को काट दिया जायेगा, इस बात ने ही मक़सूद की नींद उड़ा दी थी। मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगा। माँ जब नमाज पढ़ रही थी, वह भी बगल में बैठ अपने चाँद के लिए दुआ कर रहा था। 
कुर्बानी का समय आ गया। मकसूद चाँद को छोड़ ही नहीं रहा था। बाप ने भी बहुत कोशिश की। अंत में बाप ने कहा- बेटा ! अगर हम खुदा को अपनी सबसे प्यारी चीज नहीं देंगे, तो वह हमसे खुश कैसे होंगा ?
अब्बू ! अगर सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी से खुदा खुश होते हैं, तो आप तो मुझे सबसे प्यारा बेटा कहते हैं, आप मुझे कुर्बान कर दीजिए। इस जानवर को कुर्बान करने से क्या फायदा? 
रुबीना को लगा अल्लाह ने उसकी झोली अपने ईनामों और रहमत से भर दी हैं, अल्लाह ने जैसे मासूम बालक की जुबाँ को अपनी जुबाँ बख्श दी हो। बालक के सवाल पर बाप निरुत्तर था। 
लेखक मेरे परम मित्र 'शब्द मसीहा'। मैंने माथे पर मात्र शीर्षक का तिलक लगाया है। 
,"कला वही जो मन को छू ले, विकृत हो तो विकार तुम्हारा | "-तिलक

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