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आरंभ से ही रचनाकारिता मानव सभ्यता के विकास का मंत्र रही है.आज विध्वंस के आतंक के बीच फिर से रचनाकार को ढूँढता और उन्हें प्रोत्साहन हेतु है यह मंच. कृति,विकृति,आकृति,अनुकृति,मंचन,गायन,संगीत,चित्रकला,इन सब में "कला वही जो मन को छू ले,विकृत हो तो विकार तुम्हारा!".(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें 9911111611, 9654675533.

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Wednesday, April 28, 2010

हमारी हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की साधना...


संगीत प्रकृति के कण-कण में बसा है... चिड़ियों की चहचहाहट, नदियों का कल-कल करता जल, झरनों की झर-झर, हवा की सांय-सांय और रिमझिम बूंदों की टिप-टिप... सभी में संगीत मौजूद है... हिन्दुस्तानी संस्कृति और संगीत का चोली-दामन का साथ है... घर में कोई मंगल कार्य हो या कोई त्योहार, कोई भी गीत-संगीत के बिना मुकम्मल ही नहीं होता...
यह हमारी ख़ुश नसीबी है कि हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत ग्रहण करने का मौक़ा मिला... कई साल हमने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की साधना की है... संगीत की देवी सरस्वती की वन्दना से सुर साधना का सफ़र शुरू हुआ और इस दौरान कई संगीत के कार्यक्रमों में जाने का मौक़ा मिला... कई सम्मान भी मिले..., लेकिन सबसे बड़ा सम्मान यही था कि हमें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को क़रीब से जानने, समझने और सीखने का मौक़ा मिला...
हिन्दुस्तान में आज भी पारंपरिक कलाओं में गुरु-शिष्य की परंपरा क़ायम है... हमें भी एक ऐसे गुरु मिले, जिस पर किसी भी शिष्य को नाज़ होगा...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।
हमारे गुरु का संगीत के लिए कितना समर्पण भाव है,  इसके बारे में अगली पोस्ट में लिखेंगे...
"कला वही जो मन को छू ले,विकृत हो तो विकार तुम्हारा!"-तिलक

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